रंग बदल गये हैं जीवन के,
खुश हूँ एकान्तिक हरियाली में
चहल-पहल से दूर
कहीं हटकर
घर शांत धरा की
प्याली में
सपनों
की दौड़ से थक
कर,
रुका
था वृक्ष की छाया में,
सुलझाने
को उलझे गुथी
इस अतरंगी जग माया में
भीड़
की गूंजें छूट गईं अब
हर क्षण मौन अपनाना
है
इच्छाओं
के ज़ंजीरों पर
पूर्ण
विराम लगाना है
रंग
वही पर भाव नए
अब
पैमानों के
आयाम नए
अब न कोई चाह
अधूरी,
जग भी पुलकित साया
है
मौसम
बदलते रहते हैं नित
दिन
मन भी धुन दोहराता
है
नील
गगन में मल्हार बनकर
जीवन
नए गीत सुनाता है
तो हाँ —
अब रंग बदल गये
हैं जीवन के,
खुश
हूँ एकान्तिक हरियाली में
शशि
बिखेरती है चांदनी
प्रकाश
परोसे थाली में !
jpkallikkal/2025

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